घोषित तौर पर भले ही कुछ न हो लेकिन देश भर में लॉकडाउन के बाद से ही बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं निलंबित चल रही हैं। जिससे शुगर, किडनी, हर्ट, थैलेसीमिया के मरीजों को बेहद तकलीफ देह स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। कई मरीजों की तो असमय ही मौत भी हो चुकी है।
बता दें कि 8 अप्रैल को लोकनायक जय प्रकाश अस्पताल और गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल ने सैकड़ों क्रिटिकल मरीजों को जो कि वेंटिलेटर्स पर थे उन्हें बिना कोई वैकल्पिक इलाज व्यवस्था उपलब्ध करवाए अपने यहाँ से बेदख़ल कर दिया। 200 मरीज़ों को यहाँ से निकालकर यमुना काम्पलेंक्स में भेज दिया गया। इसमें कई मरीज मानसिक बीमारियों से ग्रस्त थे। यमुना कांपलेक्स ने इन मरीजों को IBHAS अस्पताल भेजा लेकिन IBHAS ने ये कहकर इन मानसिक मरीजों को लेने से इनकार कर दिया कि ये निराश्रित हैं। IBHAS सिर्फ़ परिवार वाले मरीजों को ही भर्ती करता है।
बाबू राम गवर्नमेंट स्कूल के प्रिंसिपल ने 3 मई को पुष्टि किया कि 26 लोगों को मई के पहले सप्ताह में यमुना स्पोर्ट्स काम्पलेंक्स से से स्कूल लाया गया था। एक सरकारी अधिकारी ने उन्हें बताया कि वे स्मॉल चिकेन पॉक्स से पीड़ित हैं। और उन्हें इलाज मुहैया करवाना भी ज़रूरी नहीं समझा गया।
14 मई की सुबह मुरादाबाद की मजदूर दंपति जब्बार चाचा नेहरु अस्पताल के इमरजेंसी गेट के बाहर अपने 6 दिन की सीरियस बच्ची को लेकर खड़े हैं बच्ची के पेट में परेशानी है। बच्ची पॉटी और पेशाब नहीं कर रही है। अस्पताल प्रशासन कह रहा है कि आईसीयू में जगह नहीं है।
गरीब मरीज मोहम्मद सुल्तान का हिप रिप्लेसमेंट होना है। कोई अस्पताल इलाज नहीं कर रहा है। स्टीफन अस्पताल गए थे वहां 2 लाख मांग रहे हैं। 4 मई को जीटीबी गए तो कहा गया कि कोरोना खत्म हो जाए तब आना।
विजय नगर के मनोज कुमार अपनी माता केबला देवी का इलाज कराने के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल दौड़-भाग रहे हैं। मनोज कुमार दिल्ली के संजय गांधी अस्पताल में अपनी मां का इलाज करवा रहे थे पिछले डेढ़ महीने से। उनका हाथ टूट गया था। डॉक्टर बोले ऑपरेशन होगा। सारी जांच करवाई गई। संजय गांधी से इन्हें जनकपुरा के सुपरहॉस्पिटैलिटी अस्पताल भेज दिया गया। वहां जाते समय उनकी मां गिर गईं उनके हाथ और पैर में चोट आ गई है। उनका चलना फिरना मुहाल है। लेकिन जनकपुरा सुपरहॉस्पिटैलिटी से उन्हें लिखकर संजय गांधी दोबारा भेज दिया गया। संजय गांधी अस्पताल में मनोज से कहा गया कि हमारे यहाँ सर्जन नहीं है इसलिए आप या तो राम मनोहर लोहिया अस्पताल जाओ या फिर सफदरजंग जाओ। मनोज कह रहे हैं हमारे पास अब किराए के भी पैसे नहीं हैं। कैसे जाएं।
दिल के मरीजों की तकलीफें
48 वर्षीय चंदर पाल को 6 साल पहले हर्ट अटैक आया था। सफदरजंग अस्पताल ने 90 हजार रुपए मांगे। पैसे नहीं थे इलाज नहीं कराया। अब फिर से उसे अटैक आया है। सफदरजंग अस्पताल ने फिलहाल कोविड-19 क्राइसिस कहकर इलाज से इनकार कर दिया। चंदर पाल की हालत गंभीर है।
65 वर्षीय अक़बर अली को एक सप्ताह पहले हार्ट अटैक आया तो उन्हें गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टर ने उन्हें भर्ती करने की सलाह दी लेकिन कोई बेड ही नहीं खाली था अतः राम मनोहर लोहिया अस्पताल रेफर कर दिया गया। RMLH ने उन्हें भर्ती कर लिया लेकिन मरीज को संदेहास्पद कोविड मरीजों के वार्ड में रख दिया। परिवार ने उन्हें 9 मई को डिस्चार्ज करवा लिया और मरीज को लेकर SGRH गए। वहां उन्हें 3 लाख से अधिक का खर्चा बताया गया। सामर्थ्यहीन परिवार अकबर अली को वापस लेकर घर आ गए। इसके बाद अकबर अली को क्रिटिकल हार्ट प्रोबलम के साथ पटपड़गंज के मैक्स अस्पताल में ईडब्ल्यूएस कटेगरी के तहत भर्ती किया गया। वहां पर उन्हें कोविड-19 पोजिटिव पाए जाने पर वापस एलएनजीपी भेज दिया गया। एलएनजीपी के डॉक्टर आईसीयू बेड की अनुपलब्धता बताकर अकबर अली को भर्ती करने में असमर्थता जता रहे हैं।
गर्भवती महिलाओं की समस्याएं
दिल्ली में कई स्त्रियां ऐसी हैं जो गर्भवती हैं। कई ऐसी हैं कि जिनका लॉकडाउन लागू होते समय 7वां, 8वां या 9वां महीना चल रहा था। बेहतर होता कि दिल्ली सरकार दिल्ली प्रदेश की गर्भवती महिलाओं की एक सूची तैयार करती और उनके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था का बंदोबस्त करती, पर अफसोस की राज्य सरकार ने गर्भवती स्त्रियों की समस्या को ध्यान देने योग्य समझा ही नहीं। इसके चलते पिछले 2 महीने से लॉकजडाउन और कोविड-19 संक्रमण के चलते कई गर्भवती स्त्रियों को बेहद तकलीफदेह स्थितियों से गुजरना पड़ा है।
अप्रैल के तीसरे सप्ताह में गरीब उज़्मा का गर्भ का नवाँ महीना चल रहा। वो दिल्ली के तमाम सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में डिलिवरी के लिए चक्कर लगाती रहीं लेकिन कोई भी अस्पताल उन्हें लेने को तैयार नहीं था। सब उन्हें संभावित कोरोना मरीज होने की संभावना तलाशते रहे और हर जगह उनसे कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट लाने के लिए कहा जा रहा था।
किडनी मरीजों को डायलिसिस न होने से जा रही जान
दिल्ली सरकार ने जल्दबाजी में 5 सरकारी अस्पतालों को कोविड-19 अस्पताल घोषित कर दिया। जिससे सीरियस अवस्था में वेंटिलेटर पर पड़े कई मरीजों की असमय ही मौत हो गई। 41 वर्षीय शाहजहां दोनों किडनी खराब होने के चलते 6-7 दिन से लोकनायक अस्पताल में वेंटिलेटर पर थीं। कोविड 19 अस्पताल घोषित होने के बाद सरकार ने उन्हें निकाल दिया बिना कोई वैकल्पिक व्यवस्था दिए। एंबुलेंस तक नहीं दिया। घर वाले उन्हें अस्पताल ले गए किसी ने नहीं लिया और फिर थक हारकर घरवाले घर ले गए उसी रात में उनकी मौत हो गई। कई अस्पतालों को कोविड-टेस्ट की जिम्मेदारी दे दी गई जो कि डायलिसिस करते थे। जिनमें पेड और अनपेड दोनों कटेगरी के किडनी मरीज थे ऐसे अस्पतालों में डायलिसिस बंद हो गई तो किडनी मरीजों की तकलीफें बढ़ गईं।
42 वर्षीय रेनल फेल्योर कंचन सोनी की 11 अपैल को मौत हो गई क्योंकि उसे डायलिसिस नहीं मिल पाई। 6 अप्रैल से शांति मुकंद अस्पताल ने डायलिसिस करना बंद कर दिया इसके बाद कंचन सोनी कई सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में डायलिसिस के लिए गईं लेकिन हर कहीं से इन्कार ही मिली। इससे पहले डायलिसिस न मिलने के चलते एक 38 वर्षीय महिला की भी मौत मौत हो गई थी।